Saturday, 14 December 2019

A lost hope

Fountains of lament
burst through my desires
for you..
Stood like the height
of a pillar that you were,
I could see your moving
eyes in the distance..
The lunacy of my search
My withered dreams.
Oh! how could I not see
The extinguished fire of
your tombs..
You were a mere despair
A lost hope.
The diverse coalesced
in your livid sanity.
And yet,
I wanted to paint those
bleached eyes of yours.
The absurdity of it all.

Vikas J.
(Bismil)

Friday, 2 August 2019

उन्वानहीन

किसी तरह सँभल नहीं रहा हूँ मैं
कि बह रहा हूँ चल नहीं रहा हूँ मैं

गले लगा ऐ मौसमों के देवता
बदल मुझे बदल नहीं रहा हूँ मैं

ये सुख भी है कि तेरे ताक़चे में हूँ
ये दुख भी है कि जल नहीं रहा हूँ मैं

सवाल पूछने लगे हैं रास्ते
सफ़र पे क्यूँ निकल नहीं रहा हूँ मैं

तुलूअ' हो रहा हूँ दूसरी तरफ़
उदास मत हो ढल नहीं रहा हूँ मैं

- बिस्मिल

Monday, 22 April 2019

बैन करते हैं

परिंदे छत पे बुलाते हैं बैन करते हैं
मेरी बयाज़ दिखाते हैं बैन करते हैं

इन्हें पता ही नहीं बंद खिड़कियों की सिसक
ये लोग रो नहीं पाते हैं बैन करते हैं

बहार देखने जाता हूँ बाग़ में तो शजर
पुराने ज़ख़्म गिनाते हैं बैन करते हैं

धुआँ धुआँ हैं मकाँ और ये रौशनी के ग़ुलाम
बुझे चराग़ दिखाते हैं बैन करते हैं

मैं किस को बात बताऊँ कि सब मेरे आगे
किसी को बात बताते हैं बैन करते हैं

जनाब-ए-मन मेरे शेरों का एहतराम करें
ये मेरा हाथ बटाते हैं बैन करते हैं


बैन - lamentation
शजर - tree
बयाज़ - notebook
एहतराम - honoring/respecting

Wednesday, 6 February 2019

आईना

अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे 
वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे 

अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ 
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे 

मैं जिसकी आँख का आँसू था उसने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे 

बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ 
कोई तो आये ज़रा देर को रुलाए मुझे 

मैं चाहता हूँ के तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

Thursday, 31 January 2019

नहीं

काम की बात मैं ने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं

ऐ उमीद ऐ उमीद-ए-नौ-मैदाँ
मुझ से मय्यत तेरी उठी ही नहीं

मैं जो था उस गली का मस्त-ए-ख़िराम
उस गली में मेरी चली ही नहीं

ये सुना है कि मेरे कूच के बा'द
उस की ख़ुश्बू कहीं बसी ही नहीं

थी जो इक फ़ाख़्ता उदास उदास
सुब्ह वो शाख़ से उड़ी ही नहीं

मुझ में अब मेरा जी नहीं लगता
और सितम ये कि मेरा जी ही नहीं

वो जो रहती थी दिल-मोहल्ले में
फिर वो लड़की मुझे मिली ही नहीं

जाइए और ख़ाक उड़ाइए आप
अब वो घर क्या कि वो गली ही नहीं

हाए वो शौक़ जो नहीं था कभी
हाए वो ज़िंदगी जो थी ही नहीं







मस्त-ए-ख़िराम - intoxicated walk
फ़ाख़्ता - a dove

Tuesday, 29 January 2019

इतना तो किया होता

या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता 
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता 

इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त 
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता 

नाकाम-ए-तमन्ना दिल इस सोच में रहता है 
यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता 

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती 
वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता 

ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने 
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता 


ग़म-ए-हिज्राँ - sorrows of separation
दस्त-ए-दुआ - hands raised in prayer
तस्कीन - comfort, pacifying

Saturday, 26 January 2019

मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी

इन आंखों से दिन रात बरसात होगी
अगर जिंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी


मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चिरागों को आंखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द तक सफर ही सफर है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी

A lot of you complain me to put meaning to difficult urdu words. So here it is:

सर्फ़-ए-जज़्बात – भावनाओं में ख़र्च
अज़ल-ता-अब्द – आदि से अंत

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...