Thursday, 29 January 2015

बेसबब बातों की गर्माहट से खिलते बेसाख्ता हँसी के सूरजमुखी...


- सुनो हमें क्रूज़ पे जाना है.. चलोगे ?

- क्रूज़ पे ? अचानक क्या हुआ तुम्हें ?

- अरे बताओ ना... ले चलोगे ?

- हम्म... ले चलूँगा जान... पर बताओ तो क्यूँ जाना है ?

- अरे वो ना हमें समुद्र के बीचों बीच पानी में खेलती हुई डॉल्फिन्स देखनी हैं..

- हम्म :) तो उसके लिये इत्ती दूर जाने कि क्या ज़रूरत है... टीवी ऑन करो.. डिसकवरी चैनल लगाओ और देख लो.. तुम भी ना...

- अरे नहीं और भी कुछ काम है...

- वहाँ समुन्दर के बीच में भला कौन सा काम है तुम्हें...

- हमें ना सूरज को सागर के आग़ोश में सिमटते हुए देखना है... और ये मिलन देख पानी को शर्म से सुर्ख होते भी...

- तो वो तो तुम यहाँ साहिल पे खड़े हो के भी देख सकती हो... उसके लिये क्रूज़ पे क्यूँ जाना है..

- नहीं ना... यहाँ बहुत से डिस्ट्रैक्शंस होते हैं... और यहाँ किनारे तक आते आते वो लहरों का सुर्ख रँग डायल्यूट हो जाता है... मुझे वो सुर्ख नारंगी रँग की लहरों का फोटो लेना है...

- और करोगी क्या उसका ?

- उस रँग का दुपट्टा रँगवाऊँगी एक...

- अच्छा... और ?

- और वहाँ शिप के डेक पे लेट के तारे देखने हैं तुम्हारे साथ... सारी रात... कितने चमकीले दिखते हैं ना वहाँ से तारे...

- हम्म... सो तो है... :) एक बात बताओ...

- क्या ?

- तुम्हें तो पानी से डर लगता है ना... फिर वहाँ समुद्र के बीच में कैसे जाओगी... वहाँ तो चारों तरफ़ पानी ही पानी होता है ना..

- हाँ तो.. तुम होगे ना वहाँ मेरे साथ...

- तो..

- तो ये कि तुम्हारे साथ तो वहाँ डीप सी डाइविंग भी कर सकती हूँ...

- डर नहीं लगेगा... ?

- ना... बिलकुल भी नहीं... डर तब लगता है जब तुम साथ नहीं होते... तुमसे दूर हो जाने का डर लगता है... तुमसे बिछड़ जाने का डर लगता है... तुम साथ होते हो तो सुकून रहता है... ये आखिरी साँस भी हुई तो उसे लेते वक्त तुम साथ होगे...

- तुम पागल हो पूरी...

- हाँ हाँ... पता है जानेमन... रोज़ रोज़ याद क्यूँ दिलाते हो :)

- उफ्फ़... मेरे गले कहाँ से पड़ गईं आ के तुम :)

- अब तो सारी ज़िंदगी ऐसे ही टंगी रहूँगी तुम्हारी गर्दन पे.. बेताल के जैसे... विक्रम अब तू तो गया... हू हा हा हा...

- हाहाहा... चलो अब नौटंकी... क्रूज़ के टिकट बुक करते हैं ऑनलाइन... वरना फिर जान खाओगी :)

- लव यू मेरे विक्रम :):):)

- लव यू टू मेरी बेताल :):):)

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...