Wednesday, 18 November 2015

आज फिर तुम्हारी याद आई है


जानती हो , जब तुमसे पहली बार बात हुई थी जाने क्यूँ कोई स्पेशल कनेक्ट फील हुआ था उसी 
दिन... एक अजीब सा खिंचाव... ऐसा जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता... ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.. किसी के भी साथ... तुमसे भागने की बहुत कोशिश करी मैंने... कितने बहाने बनाये... दिल को समझाने के... पर दिल नहीं माना... तुम किसी सपनों की परी कि तरह आई मेरी ज़िंदगी में... और उसे बेहद खूबसूरत बना दिया... अपने रंगों में रँग के... 

पाता है मैं कुछ कुछ तुमसा होता जा रहा हूँ आजकल... और तुम मुझसी... सोचो तो हँसी भी आती है और प्यार भी... तुम इमोशनल होती जा रही हो और मैं प्रैक्टिकल... इस रोल रिवर्सल में बड़ा मज़ा आ रहा है इन दिनों... ऐसा भी नहीं है की तुम पहले इमोशनल नहीं थी.. हाँ इतनी एक्सप्रेसिव नहीं  थी जितनी आजकल हो रही हो... अच्छा लगता है तुम्हारे मुँह से सुनना की तुम मुझे मिस कर रही हो... कि फलां-फलां काम करते हुए तुम्हें मेरी याद आयी... जैसे मेरी ज़िन्दगी के हर लम्हे में तुम बसी हुई हो.. अब मैं भी शामिल होने लगा हूँ तुम्हारी ज़िन्दगी के लम्हों में...

पर आजकल ना दिन कुछ अच्छे नहीं जा रहे... एक बार फिर से हम बहुत बहस करने लगे हैं... बात बात पे... जाने क्यूँ हर कुछ टाइम बाद ज़िन्दगी में ये फेज़ वापस आ जाता है... मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता.. पर जितना इससे निकलने की कोशिश करो उतना ही और फँसते जाते हैं इसमें किसी दलदल की तरह... पर तुम हो मेरे साथ और मुझे भरोसा है की निकाल ही लोगी मुझे इस दलदल से और ये फेज़ भी बीत जायेगा...

जानती हो इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक तुम हो जो मुझे इतना रूलाती हो... इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक तुम हो जिसे ये हक़ है... इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक तुम हो जिसे मैं इतना प्यार करता हूँ...

रात के इस पहर तुम्हारी बड़ी याद आ रही है... मेरा कमरा मानो कोई बड़े से बाइस्कोप में तब्दील हो गया है और तुम्हारे साथ गुज़रे हर खट्टे मीठे लम्हों की रील किसी फ़िल्म के जैसे इसकी दीवारों पर चल रही है... आँखें ख़ुशी से भर आयी हैं ये सब एक बार फिर से महसूस करते हुए... दिल से ढेर सारी दुआ निकल रही है तुम्हारे लिये... तुम्हारी पेशानी चूम के वो सब तुम तक पहुँचा दी हैं... क़ुबूल करो...!

Does my existence matter ?

Every time I feel low , the question automatically pops out of my mind. And each time I try to find the answer to I find myself to be depressed and sick of the life.
But do I really need to care what does other think of me that is the fear of unknown.  Does my existence really matters . The answer may be a yea or no depending on the psychological state of person . For most of yes it would be a big yea. But somehow under the line I feel that the matter of my my existence doesn't really bother anyone . Its just another day in their life whatever I am alive or dead. For some of may be  big blow but the impact remains to few weeks to months . What after that ???

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...