Friday, 15 September 2017

एक एहसान

मैं जब चलूँ तो ये दौलत भी साथ रख देना
मेरे बुज़ुर्ग मेरे सर पे हाथ रख देना

ढलेगा दिन तो सुलगने लगेगा दिल मेरा
मुझे भी घर के चरागों के साथ रख देना

ये आने वाले ज़मानों के काम आएंगे
कहीं छुपा के मेरे तजुर्बात रख देना

अँधेरी रात के गुमराह जुगनुओं के लिए
उदास धुप की टहनी पे रात रख देना

मैं एक सच हूँ अगर सुन सको तो सुनते रहो
गलत कहूं तो मेरे मुंह पे हाथ रख देना

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...