मौसम के मिज़ाज़ तब से रूखे है
जब से दरख़्तों से परिंदे रूठे है
अब वो बहारों की बात सुनते नहीं
कहते है मौसम के सारे रंग झूठे है
आओ मिलकर हम फरियाद करे
दरख़्तों को फिर से आबाद करे
रिश्ते खुदबखुद जुड़ जाएंगे जो अनजाने में टूटे है..
जब से दरख़्तों से परिंदे रूठे है
अब वो बहारों की बात सुनते नहीं
कहते है मौसम के सारे रंग झूठे है
आओ मिलकर हम फरियाद करे
दरख़्तों को फिर से आबाद करे
रिश्ते खुदबखुद जुड़ जाएंगे जो अनजाने में टूटे है..