Saturday, 28 February 2015

कलाइयों से खोल दो ये नब्ज़ की तरह धड़कता वक़्त तंग करता है...





फरवरी तकरीबन बीत चुकी है... ठंड भी रुखसती की कगार पर है... बस इत्ती सी बाकी है मानो हाथ छूटने के बाद उँगलियों के पोरों पर उसका स्पर्श बाकि रह गया हो... हालाँकि सुबहें और शामें अभी भी उसके मोहपाश से आज़ाद नहीं हो पायीं हैं... हल्की सी सिहरन घुली रहती है अभी सुबहों और शामों में... कुल मिला के गुलाबी सी ठंड वाला ये मौसम बहुत ही सुहाना है... एक अजीब सी मदहोशी तारी है हवाओं में... रँग बिरंगे फूलों से घर आँगन गुलज़ार है... फिज़ाओं में प्यार की ख़ुश्बू बिखरी हुई है... "लव इज़ इन दी एयर" शायद ऐसे ही किसी मौसम के लिये कहा गया होगा... प्यार के लिये परफेक्ट वेदर... दिल खामखाँ कितने तो सपने सजाये घूमता है ऐसे में... फागुन के रंगों से चमकीले... तितली के परों से नाज़ुक... वैसे भी ये तो हमारा सबसे पसंदीदा शगल है... सबसे फेवरेट वाला...

आज यूँ ही सोच रहा था इतनी बड़ी दुनिया और अरबों लोगों के बीच कैसे ढूँढ लेता है कोई... उस एक इंसान को... जो सिर्फ़ उसी के लिये बना है... जिसके लिये वो ख़ुद बना है... दो लोग... एक दूसरे से बिलकुल अलग... एक दूसरे से एकदम अनजान... पर एक दूसरे के लिये बेहद अहम... जिगसॉ पज्ज़ल के दो हिस्सों जैसे... एक दूसरे के बिना अधूरे... क्या सच में किस्मत जैसी कोई चीज़ होती है ? या फिर सोल मेट्स कि थ्योरी वाकई सही है... जानती हो जान पाँच अरब से भी ज़्यादा लोग हैं इस धरती पर... इत्ती बड़ी दनिया में इत्ते सारे लोगों के बीच भी इस दिल ने तुम्हें ढूँढ लिया... तुम्हारे शहर में होता तो ?

यूँ तो तुम्हें कभी तुम्हारे नाम से नहीं बुलाता हूँ... पर जाने क्यूँ तुम्हारे नाम से भी इक लगाव सा है... जब कभी भी तुम्हारा नाम कहीं सुनता या पढ़ता हूँ तो एक पल के लिये ठिठक जाता हूँ... यूँ लगता है मनो तुम करीब हो... कहीं आस पास ही... उस नाम में बसी हुई... जैसे ये ही नाम परफेक्ट है तुम्हारे लिये... जैसे उस ऊपरवाले ने मेरी दुआओं भरी चिट्ठियों के जवाब में ही लिखा हो ये नाम... तुम्हारा नाम... उसके आशीर्वाद जैसा...

वहाँ भी मौसम बेमानी सा होता होगा ना ???... कभी धूप कभी छाँव ..आपस में एक दूसरे से लड़ते हुए ... फिर दूसरे ही पल एक दूसरे को मानते हुए... फ्लेट न. १०१ में भी प्यार की हवा तो बहती ही होगी ना ??? शाम को उस घर की बाल्कनी भी तो उदास हो जाती होगी ना ?? सूरज के ढलने के साथ ही मन का सूरज भी तो ढल जाता होगा ना??? पागल सा हो गया हूँ तुम्हारे जाने के बाद... कुछ होश नही रहता.... देखो ना अभी भी तुमसे सवाल पे सवाल पूछ रहा हूँ , जबकि मैं जनता हूँ की इनके जवाब तुम मुझे नही दोगी  ...

तुम भी सोच रही होगे जाने क्या बड़बड़ा रहा हूँ इत्ती देर से... कभी वेदर... कभी सोल मेट्स... कभी नाम... कभी मौसम.... हम्म... मुद्दा दरअसल ये है जान की तुम्हें मिस कर रहा हूँ... बहुत... तुमसे बात नहीं हो पाती तो तुम्हारे बारे में बात कर के ही जी को बहला लेता हूँ... कितना बिज़ी रहने लगी हो आजकल...खुद में उलझी हुई ... समय ही नहीं मिलता साथ बिताने को... मिलता भी है तो जैसे छुपन छुपाई खेलता रहता है... झलक दिखा के गायब... बहुत दुष्ट हो गया है... इस बार मिलेंगे न तो इसे ख़ूब मज़ा चखाएंगे... इस वक़्त को स्टैचू बोल के भाग चलेंगे कहीं दोनों...!

Friday, 13 February 2015

तेरे लिए कुछ करना चाहता हूँ

ज़्यादा कुछ नही थोड़ा सा प्यार करना चाहता हूँ...
एक छोटा सा घर और उनमे क़ैद कई यादें करना चाहता हूँ....
दीवाली का दिया संग जलाना चाहता हूँ....
होली में तेरी हया की लाली से रंगो को शर्मसार करना चाहता हूँ...
कोहरे की रातो में , मेरे काँधे पर तेरा सिर रखना चाहता हूँ....
अलसाई धूप में , तेरे मन की किताब पड़ना चाहता हूँ....
कल की बुनियाद पर आज के रिश्तो की इमारत खड़ी करना चाहता हूँ....
अपने लिए नही पर तेरे लिए भीगी खुशी चाहता हूँ....
कल के साए समेट ले, तेरे लिए आज के सपने संजोना चाहता हूँ....
मूंद के आँखें हंस दे ज़रा ...तेरी आँखों से नींद चुराना चाहता हूँ...
लिख दे तकदीर तू मेरी ... तेरे लिए हाथों की लकीर मिटाना चाहता हूँ....
फिर वही रात है ... फिर वही अंधेरा ... एक लौ उम्मीद की तेरे मन में जलाना चाहता हूँ...
पतझड़ के आँखरी फेरे में ... तुझ संग क्षितिज छूना चाहता हूँ...
थोड़ा सा हँसके  ... थोड़ा सा घबराके ... दबे पाँव तेरे दिल में घर करना चाहता हूँ ...
आवाज़ तेरी हल्की सी सुनके ... मद्धम सी  गुरबानी  सुनना चाहता हूँ....

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...