Friday, 13 February 2015

तेरे लिए कुछ करना चाहता हूँ

ज़्यादा कुछ नही थोड़ा सा प्यार करना चाहता हूँ...
एक छोटा सा घर और उनमे क़ैद कई यादें करना चाहता हूँ....
दीवाली का दिया संग जलाना चाहता हूँ....
होली में तेरी हया की लाली से रंगो को शर्मसार करना चाहता हूँ...
कोहरे की रातो में , मेरे काँधे पर तेरा सिर रखना चाहता हूँ....
अलसाई धूप में , तेरे मन की किताब पड़ना चाहता हूँ....
कल की बुनियाद पर आज के रिश्तो की इमारत खड़ी करना चाहता हूँ....
अपने लिए नही पर तेरे लिए भीगी खुशी चाहता हूँ....
कल के साए समेट ले, तेरे लिए आज के सपने संजोना चाहता हूँ....
मूंद के आँखें हंस दे ज़रा ...तेरी आँखों से नींद चुराना चाहता हूँ...
लिख दे तकदीर तू मेरी ... तेरे लिए हाथों की लकीर मिटाना चाहता हूँ....
फिर वही रात है ... फिर वही अंधेरा ... एक लौ उम्मीद की तेरे मन में जलाना चाहता हूँ...
पतझड़ के आँखरी फेरे में ... तुझ संग क्षितिज छूना चाहता हूँ...
थोड़ा सा हँसके  ... थोड़ा सा घबराके ... दबे पाँव तेरे दिल में घर करना चाहता हूँ ...
आवाज़ तेरी हल्की सी सुनके ... मद्धम सी  गुरबानी  सुनना चाहता हूँ....

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A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...