Tuesday, 10 May 2016

एक ख़याल तेरा

इन दिनों मासूम से एक ख़याल से गुफ्तगू होती है..
अपने बेरंग होने का एहसास होता है आजकल..
उसके अंजान इशारो पे जाने क्यू मुस्कुराता हूँ मैं
उसके बेतुके लतीफ़ो पे गुदगुदाता हूँ...
जान कर ग़लतिया करता हूँ,
और फिर सब जान कर भी हार मान जाता हूँ मैं..

इसी ख़याल के मासूम खिलखिलाते तानो मे
आजकल भोलेपन की तसल्ली पता हूँ मैं..
कभी कभी ये ख़याल चुप्पी मे बोलता है..
संजीदगी से मेरे तगाफुल हरफ़ टटोलता है..
और मैं अंजान बन कर उसके साथ फिर जी लेता हूँ..

अक्सर यू ही घंटो हम बतियाते हैं आजकल
अक्सर यू ही खुद मे ख्वाब बुन लेता हूँ मैं...

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