Friday, 25 November 2016

तेरा मेरा घर

कि उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा न बाज़ों का डर

मखमल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी, कोनों में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी, चन्दन सी लिपटी हाँ सेहन भी होगी
संदल की खुश्बू भी टपकेगी छत से, फूलों का दरवाज़ा खोलेंगे झट से
डोलेंगे मय की हवा के हाँ झोंके, आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के
आँगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते, सूखे से नाज़ुक से पीले छिटक के
पाँवों को नंगा जो करके चलेंगे, चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
कोयल कहेगी कि मैं हूँ सहेली, मैना कहेगी नहीं तु अकेली
बत्तख भी चोंचों में हंसती सी होगी, बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी
हम फिर भी होंगे पड़े आँख मूँदें, गलियों की लड़ियाँ दिलों में हाँ गूंधे
भूलेंगे उस पार के उस जहां को, जाती है कोई डगर, जाती है कोई डगर
चाँदी के तारों से रातें बुनेंगे तो चमकीली होगी सहर

उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा न बाज़ों का डर

आओगे थक कर जो हाँ साथी मेरे, काँधे पे लूँगी टिका साथी मेरे
बोलोगे तुम जो भी हाँ साथी मेरे, मोती सा लूँगी उठा साथी मेरे
पलकों की कोरों पे आए जो आँसू, मैं क्यूँ डरूँगी बता साथी मेरे
ऊँगली तुम्हारी तो पहले से होगी, गालों पे मेरे तो हाँ साथी मेरे
तुम हँस पड़ोगे तो मैं हँस पडूँगी, तुम रो पड़ोगे तो मैं रो पडूँगी
लेकिन मेरी बात इक याद रखना, मुझको हमेशा ही हाँ साथ रखना
जुड़ती जहाँ ये ज़मीं आसमां से, हद हाँ हमारी शुरू हो वहाँ से
तारों को छू लें ज़रा सा संभल के, उस चाँद पर झट से जाएँ फिसल के
बह जाए दोनों हवा से निकल के, सूरज भी देखे हमें और जल के
होगा नहीं हम पे मालूम साथी, तीनों जहां का असर, तीनों जहां का असर
के राहों को राहें बताएँगे साथी हम, ऐसा हाँ होगा सफ़र

उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा न बाज़ों का डर⁠⁠⁠⁠

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