Friday, 25 November 2016

इश्क़ में दिल्ली होना


आज मैं दिल्ली सा फील कर रही हूँ..

हाँ तो मैं भी आज दिल्ली हो जाता हूँ...

तुम क्यूँ होगे दिल्ली से ?

अरे , ये भी कोई बात हुई.. जो तुम फील करो वही तो मैं भी करूँगा ना ? हम तुम कोई अलग थलग थोड़े ही है ? Symbiotic रीलेशन हैं ना अपना? है ना ?

हाँ है तो सही... तो चलो आज मैं हौज़ खास हूँ

ठीक है.. तो मैं भी आई.आई.टी.  दिल्ली बन जाता हूँ.. तुम में बसा हुआ सा .. एक अलग जहाँ...

नही इतनी नज़दीकी अच्छी नही..

तुम में होके भी तुम में ना होना .. मेरे ना के होने के जैसा है..

तुम बड़े झक्की किस्म के आदमी हो ? नालयक .. ईडियट कहिके ...

हाँ मेरी ईडियट .. हूँ भी क्यूँ ना ... मैं तुमसा होते जा रहा हूँ ना ? याद है ?

तुम नही मनोगे... चलो तो तुम मुनिर्का बन जाओ..

हाँ , मैं मुनिर्का बन जाता हूँ.. और हम तुम को बँधेगा ये फ्लाइ ओवर .. सदियों की दूरी को मिनटो में मिटाने वाला ये फ्लाइ ओवर..

अब मैं हेप्पी फील कर रही हूँ..

सही है तुम्हारा हिसाब .. पल में तोला पल में माशा..

क्यूँ मैं खुश क्यूँ ना हूँ भला .. तुम्हारी बातें और तुम... दोनो साउत वेस्ट दिल्ली की तरह ... इंदिरा गाँधी एरपोर्ट के विमानो की तरह हवा में उड़ती हुई.. साय साय...

चलो तो अब मैं सैन फ्रॅनसिसको सा फील कर रहा हूँ...





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