Friday, 18 August 2017

गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर


शाम का टुकड़ा
धूप का कोना
सिरा नींद का
मन का बिछौना
उखड़ी उखड़ी सी दोपहरें
शाम लगाए आँख पे पहरे
रात महल में ख्वाब न ठहरे
आज का दिन बेज़ार लिखा है
लेकिन तेरी ग़ज़ल के जेवर
पहन के बदले रात के तेवर
तन्हाई भी अब महफ़िल है
लम्हो पर गुलज़ार लिखा है
जन्मदिन मुबारक, गुलज़ार साहब !

- आपका एकलव्य, विकास

No comments:

Post a Comment

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...