Friday, 18 August 2017

Random से अल्फ़ाज़ भाग १

साँझ ढले.....😒
गम में हूँ या हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं 
खुद को भी हूँ मैं याद मुझे खुद पता नहीं 
मैं तुझको चाहता हूँ मगर मांगता नहीं 
मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं...

* *

मन ख्वाइशों में अटका रहा ...
और ज़िन्दगी हमे जी कर चली गयी

* *
*कहना था ......मुझे बहुत कुछ .......*
*खैर .....आप आज खुश है..जाने दीजिए.....*

* *
*इन 'शायरियों' में खो गया है​*
*कहीं 'सुकून' मेरा दोस्तों*
*जो तुम 'पढ़कर' मुस्कुरा दो​*
*तो 'वसूल' हो जाए*

* *
इश्क़ अगर ख़ाक ना कर दे
तो ख़ाक इश्क़ हुआ
* *
*गाँव को गाँव्* ही रहने दो साहब
*क्यों* शहर बनाने में तुले हुवे हो...
*गांव* में रहोगे तो
*माता-पिता* के नाम से जाने जाओगे ,
*ओर*
*शहर* में रहोगे तो .....
*मकान नंबर* से पहचाने जाओगे 
* *
*मुझ पर इलज़ाम झूठा है....*
*यारों...*
*मोहब्बत की नहीं..हो गयी थी....!!*
* *

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