Tuesday, 30 January 2018

फीकी चाय वाला प्यार


"क्या कहा? तुमने चाय बनाई है, वो भी मेरे लिए? 3 साल हो गए हैं हमारी शादी को और तुम्हें तो ये भी याद नहीं होगा कि तुमने आखिरी बार किचन में कदम कब रखा था।" अंजलि ने अपने पति सुशील की खिल्ली उड़ाते हुए कहा।

"किचन में नहीं आया तो क्या हुआ? हर वक़्त, हर लम्हा तुम्हारे दिल में तो आता हूँ ना?" सुशील ने जुबां से ज़्यादा आँखों से इसका जवाब दिया।

"तुम भी ना सुशील, बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे। काश ये बातों की मीठास तुम इस फीकी चाय में भी डाल देते, बिलकुल स्वाद नहीं है इसमें तो।"

"अरे, मैंने सोचा आज कुछ अलग किया जाये। मीठी चाय तो हर दिन पीते हैं, तो इसलिए ये फीकी चाय बना दी। खैर, चाय में चीनी मत खोजो, इसमें तो..."

"हाँ पता है, इसमें तुमने प्यार घोला है जिसकी मिठास कोई चीनी पूरी नहीं कर सकती। है ना?"

"बिल्कुल सही कहा अंजली। तुम्हारी यही बात मुझे सबसे अच्छी लगती है कि तुम अक्सर मेरी..."

"कि मैं अक्सर तुम्हारी अधूरी बातें पूरी करती हूँ। हाँ, मुझे पता रहता है कि तुम्हारा दिल क्या कहना चाहता है। वो सीधा तुम्हारी आँखों को सिग्नल देता है, जिन्हें मैं पढ़ लेती हूँ।"

अंजली की इस बात ने सुशील के चेहरे पर फीकी चाय पीने से आई कड़वाहट को दूर कर दिया और उसने अंजली को अपनी बाँहों में भर लिया।

और इस तरह एक बिना चीनी वाली फीकी चाय ने उनकी ज़िन्दगी में फिर मिठास घोल दी।

दुआ करो

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे 
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे 
वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे 
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे 
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है 
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे 
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही 
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे 
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है 
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे 
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा 
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे 
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम 
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे 

Thursday, 18 January 2018

बड़े दिन हो गए

माचिस की सीली डब्बी,
वो साँसों में आग..
बरसात में सिगरेट सुलगाये
बड़े दिन हो गए...

एक्शन का जूता
और ऊपर फॉर्मल सूट...
बेगानी शादी में दावत उड़ाए
बड़े दिन हो गए...

ये बारिशें आजकल
रेनकोट में सूख जाती हैं...
सड़कों पर छपाके उड़ाए
बड़े दिन हो गए....

अब सारे काम सोच समझ कर करता हूँ ज़िन्दगी में....
वो पहली गेंद पर बढ़कर छक्का लगाये
बड़े दिन हो गए...

वो ढ़ाई नंबर का क्वेश्चन पुतलियों में समझाना...
किसी हसीन चेहरे को नक़ल कराये
बड़े दिन हो गए....

जो कहना है
फेसबुक पर डाल देता हूँ....
किसी को चुपके से चिट्ठी पकड़ाए
बड़े दिन हो गए....

बड़ा होने का शौक भी
बड़ा था बचपन में....
काला चूरन मुंह में तम्बाकू सा दबाये
बड़े दिन हो गए....

आजकल खाने में मुझे
कुछ भी नापसंद नहीं....
वो मम्मी वाला अचार खाए
बड़े दिन हो गए....

सुबह के सारे काम
अब रात में ही कर लेता हूँ....
सफ़ेद जूतों पर चाक लगाए
बड़े दिन हो गए.....

लोग कहते हैं
अगला बड़ा सलीकेदार है....
दोस्त के झगड़े को अपनी लड़ाई बनाये
बड़े दिन हो गए.....

वो साइकल की सवारी
और ऑडी सा टशन...
डंडा पकड़ कर पहिया चलाये
बड़े दिन हो गए....

किसी इतवार खाली हो तो
आ जाना पुराने अड्डे पर...
दोस्तों को दिल के शिकवे सुनाये
बड़े दिन हो गए........

Monday, 1 January 2018

फिर नया साल और पुराना मैं

फिर नया साल और पुराना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं …
मैंने आखिर भुला दिया है सब
तेरे सजने की कवायद की खनक
तेरी परियों की सजावट सी चमक
तेरी खामोश निगाही का सबब
तेरी दस्तक की ज़बां का मतलब
मैंने आखिर भुला दिया है सब
यूँ भी थोडा ही तुझको जाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं …

सच तो ये है कि सच है इतना सा
आधे हम तुम थे ग़लत, आधे सही
लम्हे बिखरे थे, हमने बांधे नहीं
शाख पे दूरियों की फल आया
चख के न देखा ज़हर कितना था
सच तो ये है कि सच है इतना सा
सचसे लेकिन हूँ अब डरा ना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं …


वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
टुकड़ा इक थामे है, कालिख का है
गिर जा, हाथों पे वक़्त लिखता है
गिर के भी किरचे फिर उठाऊंगा मैं
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं
वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
वक़्त की ज़िद कभी न माना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं …

मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
न मैंने दिल के तरीके सीखे
न ही रिश्तों के सलीके सीखे
हैं नुमाइश पे लम्हे आज भी सब
पर इन से ऊब गया जाने कब
मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
मुझको न देख तू, बेगाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं …

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...