Saturday, 10 February 2018

कई बार

कई बार देखी हैं सिंदूरी शामें
उफ़क़ते परे जगमगाती हुई
कई बार खामोशियों में सुना है
गुजरती हैं, मुझको बुलाती हुई
जहां पे मिले वो, जहां जा रहा हूं
मैं लाने वही आसमां जा रहा हूं
किसी आसमां पे तो साहिल मिलेगा
बहुत बार सोचा, ये सिन्दूरी रोगन
जहां पे खड़ा हूं, वहीं पे बिछा दूं
ये सूरज के ज़र्रे ज़मीं पे मिले तो
एक और आसमां मैं, ज़मीं पे बिछा दूं
जहां पे मिले वो, जहां जा रहा हूं
मैं लाने वही आसमां जा रहा हूं
किसी आसमां पे तो साहिल मिलेगा
मैं लाने वही आसमां जा रहा हूं
किसी आसमां पे तो साहिल मिलेगा
मैं लाने वही आसमां जा रहा हूं
जहां पे जमीं आसमां छू रही है
वहीं जा रहा हुं, वहां जा रहा हूं
किसी आसमां पे तो साहिल मिलेगा

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