Tuesday, 13 February 2018

कही पे F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?

एक चिड़िया के बच्चे चार
घर से निकले पंख पसार
देख लिया मैने जाग सारा
अपना घर है सबसे प्यारा

घर से दूर गुमनामी के बियाबान में
सपनो के पीछे भागते-भागते
आज जो एक पल को ठहरा हूँ
तो ये एहसास हुआ के पिछले कुछ सालो में
मेरी कुछ आदतें और समान जो है
वो इतने बड़े शहर में कही लापता सी हो गयी
खो गयी हैं
खो गयी हैं, ये कहना ग़लत होगा
मैने उन्हे खो दिया है
ये कहना सटीक होगा

तो एक चीज़ बताइए आप लोग
मेरी जो ये आदतें हैं
मेरा जो ये समान हैं
जो इन सालों में कही खो गया है
इन सबको खोजने के लिए कही पे F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?

एक बूढ़े से मकान के
दरकति हुई छत पे
वो बूढ़ी सी दादी माँ
जिसके हाथों में उन का एक गोला होता था
काँपते हाथो से कभी ८ नंबर की
तो कभी १२ नंबर की सुइयों को थामे हुए
जो यूँही बुन दिया करती थी
नीली पीली धारियों वाला
साल का एक लौता वो स्वेटर
जिसे अब जाकर, माल में
एक हज़ार का खरीद के लता हूँ
माल से लाए गये उस स्वेटर में
यार वो गर्मी ही नही होती है
जो दादी माँ के हाथों से बनाए गये
ऊन के उन स्वेटरों में हुआ करती थी
तो क्या दादी माँ के उस स्वेटर की गर्मी के लिए
आज कही पे जाके F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?

गले में हनुमान जी के नाम वाला
लाल बद्धि हुआ करता था
पीर बाबा के मज़ार से लाया गया वो काला धागा
जिसको माँ ने चिकन पॉक्स होने के
अगले साप्ताह बँधा था हमको

वो एक पुरानी कॉपी थी
जिसपे माधुरी दीक्षित के फोटो वाली जिल्द लगाई हुई थी
वो रेनोल्ड्स का जेटर पेन था
जिसके निशान कॉपी में कम और
मेरी उंगलियों के गड्ढों में ज़्यादा पाए जाते थे

वो डोगा, परमाणु, नागराज, सूपर कमांडो ध्रुव
का कॉमिक्स हुआ करता था
जो हर महीने की पहली तारीख पापा
मेरे इन्ही हाथों में लाकर रख दिया करते थे

तो क्या उस लाल बद्धि के लिए
उस काले धागे के लिए
उस ज़िल्द के लिए
उस कॉमिक्स के लिए
आज कहीं पे जाके F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?


अच्छा ! साइकल का मॅड गार्ड याद है ?
अरे ! जिसके पीछे लेदर की बरसाती पे
नये फिल्म का नाम लगवाते थे
साइकल के स्पोक में वो गोल-गोल रंग बिरंगी घिरनी होती थी
जो पुट पुट करता था ना ?
वो लगवाते थे

कॅरियर के टेन्सन से बेफ़िक्र होकर
साइकल के जिस केरियर पे बैठकर
मोहल्ला भर के लड़कों को चचिया चचिया के
बुलाते थे
उस आठ ओवर के मैच के लिए
जिसपर पार्ले जी का बड़ा पॅकेट दाँव पर लगा करता था

वो शनिवार को सुबह नौ बजे आने वाला शक्ति मान सीरियल
वो बेरहम बिजली बोर्ड जिसके बिजली काट देने के बाद
दरवाज़े पर खड़े ट्रॅक्टर से बॅटरी निकाल के
जिसपर हमलोग ब्लेक एंड वाइट टीवी चालाके
शक्तिमान देखा करते थे, महाभारत देखा करते थे
कृष्णा देखा करते थे
और फिर रविवार के सुबह वाली वो रंगोली
और शाम चार बजे जो सिनिमा आता था
डीडी वन पर , रविवार को
उसका इंतेज़ार करना
या शुक्रवार को साड़े नौ बजे रात में जो फिल्म
आता था उसका इंतेज़ार करना
बुद्धवार और शुक्रवार को चित्र हार का इंतेज़ार करना

वो समोसा जलेबी की ललचाहट
वो डेढ़ रुपये का समोसा खाना
और उसके साथ चटनी मिल जाए तो
आहा क्या बात है !
उस डेढ़ रुपये वाले समोसे को
दो रुपये का होता देखना
फिर दो रुपये से वो पाँच रुपया कब हो गया
अब तो दस रुपया में बिकता है
सिनिमा चले जाइए तो पचास रुपये में बिकता है

तो वो दो रुपये वाला जो समोसा था
वो आज खोजने से भी नही मिलता है यार !
वो कही खो गया है
वो दो रुपये का समोसा जो हैं ना?
वो लापता हो गया है
तो आज उस दो रुपये वाले समोसे के लिए
कहीं पे F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?

लिखा सकते हैं ?

अब आगे और क्या बताए यार ?
पापा के आँखों में जो हमारे लिए सपने थे
दूर के रिश्तेदार जो हर मुसीबत में मेरे अपने थे
मम्मी का वो स्कीम-७१ वाला हनुमान मंदिर
हर मंगलवार और शनिवार को जाना और
बजरंगबली से उनकी कहाई सुनाई
और बदले में मिलती हमको
नववैदयं की वो मिठाई

ये सब जो हैं ना खोजे से भी नही मिलता है यार
सब खो गया है
सब लापता हो गया कहीं
इन सब चीज़ों के लिए
कोई हमको F.I.R. लिखवा दो ना यार !
इन सब चीज़ो के लिए F.I.R. लिखवा दो यार प्लीज़

एक और बात बतायें आप लोगो को ?
इन सब चीज़ों के अलावा ना,
कुछ आदतें भी थी मेरी
और अब वो आदतें भी लापता है

जैसे की हर शाम माँ से बात करते हुए
आँखें भिगो लेने वाली वो आदत
महीने के आँखरी में
पापा के पैसे भेजने के बाद
ज़िंदगी में कुछ बनने के लिए
सेल्फ़ मोटीवेट हो जाने वाली आदत
मंदिर से गुज़रते वक़्त
रिक्शे पर बैठकर
बस यूँ ही हाथ जोड़ लेने वाली आदत

छोटे छोटे कपड़ों में लड़कियों को देखकर
शर्मा जाने वाली वो आदत
किसी को ड्रिंकिंग या स्मोकिंग करते हुए देख
नाक भों सिकोड़ने की आदत
इंदौर जाती हुई ट्रेन को
प्रगती मैदान के पास से गुज़रते हुए देखकर
इंदौर को याद कर लेने की आदत

पता भी नही चला के ये सब आदत
कब ? कहाँ ? कैसे ?
ख़त्म हो गयी यार
गुम हो गयी
लापता हो गयी

फिर सोचे की ये आदतें कहा छूट गयी ?
ये आदतें हम कहाँ छोड़ आए ?
क्या इन आदतों को हम
उस कॉलेज की लाइब्ररी में छोड़ आए ?
जहा पर मोटी- मोटी किताब पढ़के
दिमाग़ का हम दही किया करते थे
तो क्या ये मेरी आदतें
उन मोटी-मोटी किताब में रह गयी ?
या इन आदतों को छोड़ आए हैं
हम डी.टी.सी. के बस के पहिए के नीचे
या इन आदतों को हम छोड़ आए हैं
किसी लोकल रुट के मेट्रो ट्रेन की
चलती हुई पटरी के नीचे
या किसी का हाथ थाम के
जब उस दिन हम मोमो खाए थे
तो उस मोमो की चटनी वाले डिब्बे के बगल में

अपनी इन आदतों को हम छोड़ आए हैं
आँखिर इन आदतों को कहा छोड़ आए हैं?
इस सामान को कहा छोड़ आए हैं हम ?
बहुत ज़ोर लगाया दिमाग़ पे
लेकिन ये आदतें ये सामान मिल ही नही रहा है यार
आपने मेरे इन सामान को देखा है क्या ?
सुनिए ना ! इनमे से कोई भी आदत ,
इनमे से मेरा कोई भी सामान अगर
आप लोगो को मिले ना तो
प्लीज़ हमको लौटा दीजिएगा ना !
और अगर नही मिल पाए ना
तो सिर्फ़ इतना बता दीजिए
की इन सब चीज़ों के लिए
हम कही पे जाके F.I.R. लिखा सकते हैं क्या ?

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