Wednesday, 13 June 2018

समंदर

समंदर के उस छोर तक जहाँ तक मैं निहारता हूँ 
मुझे बस तुम दिखाई देते हो।

कहीं अल्हड़ करती लहरों में
जब वो आकर मुझे अपनी ओर खींचती है।

कभी मदमस्त आती हवाओं में
जब वो मुझे छूकर गुजरती है।

कभी सूरज की चमकती किरनों में
जब वो अचानक आकर मेरे चेहरे को लगती है।

सब देखते हैं समंदर की खूबसूरती
पानी का बहाव, मस्त मगन लहरें।

मगर मैं देखता हूँ उनमें तुम्हें
मेरी सोच में रहते हैं तुम्हारे ही पहरे।

पता नहीं पूरे होंगे या नहीं
पर सजा लेता हूँ कुछ ख़्वाब सुनहरे।

तुम्हारी हँसी याद आ जाती है
और मुस्कुरा लेता हूँ।

साथ कई लोग होते हैं पर
न जाने क्यूँ समंदर तन्हा सा नज़र आता है मुझे
अकेले चुपचाप खड़े होकर समंदर में तुम्हे देखना
समंदर से तुम्हारी बातें करना भाता है मुझे।

कुछ देर बाद फिर आज में लौट आता हूँ
दिल में हलचल सी होती है फिर सम्भल जाता हूँ।

एक वादा कर आता हूँ अनजाने में समंदर से
अब जब भी आया सिर्फ उसके साथ वक़्त बिताउँगा

तुम्हारी यादों को भूल कर
लहरों से बातें कर आऊंगा
मुमकिन हुआ तो खुद को लहरों के सामने
नहीं महसूस होने दूँगा अकेला।

समंदर का रूठना भी कहाँ गलत है बताओ
मिलने उससे जाता हूँ तुमसे मिल आता हूँ।

बस अब से ऐसा नहीं होगा
हर बार मैं यही जवाब देता हूँ।

हर बार वो मुझे माफ कर देता है
हर बार मैं वादा तोड़ देता हूँ।

आखिर कब तक झूठे वादों पर रहता वो
अब उसने बात करना बंद कर दिया है।

मैं जाता हूँ उसके किनारे आज भी
उसने लहरों को मेरा हाल जानने भेजना बन्द कर दिया है।

उसके रूठने पर उदास भी होता हूँ
फिर तुम्हारा ख्याल आ जाता है।

तुम्हें कैसे मनाता था सोचने लग जाता हूँ
और कभी ना पूरा होने वाला ख़्वाब जिंदा हो जाता है।

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