Dear RDB ... I am sure that the heavens would have ensured you a comfortable stay; wish you bliss and peace.
But we miss you a lot. The world has changed, which is to be expected. But you know what? Your songs are still listened to by all generations and cherished as much. There is something called 'remix' in today's world. Your songs seem to flourish even in the new avatar. You may like some, you may feel butterflies in your stomach at few others. You need not get upset cause in whatever form your songs are being presented, people are driven to emotional ecstasy or nostalgia.
Gulzarsaab is doing fine - ageing very gracefully. He has managed to keep pace with the generations and churns out lyrics that are popular with present listeners. At times he gives in to the demands of certain segments as he encourages lovers to light 'bidi as two hearts strike. But honestly, he is adorable.
Not much to talk about those few who may have been close to you. Yes, there has been an encouraging attempt in a video-biopic on your life called 'RD Unmixed'. We get to hear you talk and sing in your studio when you composed those gems. I see you prepare chicken curry while composing at the same time.
Your band members have remained unflinchingly faithful to you and undertake various initiative to keep your memories alive.
We treasure you and await to meet you sometime in the future. Please ensure a bouquet of fresh songs ready for your fans as we too take the leap.
Only love ... only regards.
Your fan!!
क्या बताऊं अपने बारे में ... बस इतना समझ लीजिए की पागल हवा का झोंका हूँ .. .. जो मन करता है वही करता हूँ ... बक-बक करने की आदत है सो ब्लॉग लिख कर मन बहलाता हूँ ..... ज़मीन से जुड़ा हूँ .. सो ज़मीन की बातें करता हूँ .. छोटी-छोटी चीज़ो में खुशी ढूँढने की कोशिश करता हूँ ... बॉस मैं ओल्ड फेशन्ड .. थोड़ा सा कन्सर्वेटिव .. दूरदर्शन जेनरेशन का आदमी हूँ .. मिलने की उम्मीद करता हूँ .. बिछड़ने से डरता हूँ .. सपने देखता हूँ .. इससे ज़्यादा मेरे बारे में क्या जानोगे.... !!!!
Sunday, 30 September 2018
Wednesday, 19 September 2018
रंजिश ही सही ..
गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..
कभी इन शब्दों से शुरुआत नही करना चाहता था, पर क्या करे मन ये ज़रा बावरा सा है। बेकग्राउंड में हल्के- हल्के कोई ग़ज़ल सी फ़िज़ा में घुल रही है। आज काफ़ी अरसे बाद काग़ज़ पर कुछ ऊढेलना का मन किया। हिन्दी टाइप करना आसान नही है, अभी पूर्ण विराम चिन्ह मतलब की फुल स्टॉप ढूँढ रहा था। मिल ही नही रहा था कब से। ना जाने कहा खो गया, ना जाने में उसे कहाँ रख के भूल आया। ज़िंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है ना? कुछ ना कुछ हम भूल ही जाते है, कभी- कभी तो सब हमारी नज़रों के सामने होता है फिर भी एक शून्य की परत आँखों के सामने चढ़ी रहती है, और सब कुछ प्रत्यक्ष होने के बाद भी ओझल सा लगता है। कभी- कभी एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब आपको पता है की किसी किस्से, किसी कहानी को अब फुल स्टॉप लगाना ज़रूरी है, पर ये मन की गुस्ताख़ी देखिए फुल स्टॉप लगाना ही नही चाहता और ये दिल वाबस्ता यह कह उठता है-
रंजिश ही सही ..
दिल ही दुखाने के लिए आ..
कॅलीग के साथ कॅफेटीरिया में बैठा था, चाई की चुस्कियाँ ले रहा था। मोहतरमा मेरे करीब से गुज़रीऔर मुझे देखते ही यूँ नज़र फेरी जैसे दुनिया भर के सारे ऐब मुझ में ही क़ाबिज़ हो। मैं मुज़रिमो की तरह सिर झुकाए बैठा हुआ था। खुद में ही कूड़ता हुआ। मेरे लिए तो क़ानून भी तुम हो और इंसाफ़ भी ,तुम जो कहो, जो सज़ा दो सब मंज़ूर है अब। मन ये आवाज़ गूँज उठी-
माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
रंजिश ही सही...
तुम पास होती हो तो लगता है खुद को पा लिया है मैने। मुझे तुम से ज़्यादा कोई समझ ही नही पाएगा। लेकिन हम-शहर होने पर भी इतनी कड़ुवाहट ना जाने क्यूँ। हाँ पर ये मेरा मन भी बड़ा आशावादी है, इसे लगता है सब ठीक ही चल रहा है। फिर मैने मन को तस्सली से समझाया, सच का आईना दिखाया तब जाके ये हुज़ूर कुछ समझ पाए। तुमसे एक अंजान सा रिश्ता बनते जा रहा है। मानो की हम कभी तो मिले थे, कहीं तो मिले थे। तुम आती हो तो अपने होने का एहसास होता। जानती हो तुम जब तुम्हे देखता हूँ तो क्या सोचता हूँ -
नैना तेरे कजरारे हैं, नैनों पे हम दिल हारे हैं
अनजाने ही तेरे नैनों ने वादे किए कई सारे हैं
साँसों की लय मद्धम चलें, तोसे कहे
बरसेगा सावन...
ना जाने कब से मन में दबी हुए बातें बाहर खुली हवा में साँस लेना चाहती थी। शब्द अपने अस्तित्व की तलाश में भटक रहे थे दर- दर। पर जब से तुम मिली हो इन्हे इनको इनका वजूद मिला है। ऐसी ही तो हो तुम सब कुछ ठीक कर देने वाली। मैं कोई खुदा तो नहीं पर तुम मेरे लिए किसी इबादत से कम नही है। तुम होती हो तो लगता है सब कुछ मुकम्मल है। बस डर लगता है की मेरे इस ख्वाब को कोई तोड़ ना दे, एक यही तो मेरे पास जो तुम्हारा है। सुनो, मेरे बारे में कोई बात ना करना ज़माने से क्यूंकी -
बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक़ जाएगी..
तुम्हारी नाराज़ आँखें सब बयाँ कर जाती है। बिन बोले ये कितना बोलती है, बक -बक, बक-बक, थकती नही है ये? वैसे तो मेरे सामने आते ही तुम चुप हो जाती हो। पर इस खामोशी में भी तुम्हारी ही आवाज़ सुनाई देती है। हर एक चेहरा इबारत बन गया है, जिसे देखूं उसमें तुम नज़र आती हो। पर तुम्हारी ये चुप छाप निगाहें अब खलने लगी है, और दिल ये कह उठता है-
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
रंजिश ही सही...
तुमसे ही अब मेरी सारी ग़ज़लें है मेरी सारी बातें है। बहुत इस काम में लगने लगा दिल, ग़ज़ल कहना इबादत बन गया है। ज़रा सा छू लिया था मैने तुम्हें, महेकना आपनी आदत बन गया है। पता है मैने, हमारे लिए कई ख्वाब सजाए हैं। कुछ पूरे है, कुछ अधूरे और कुछ केवल एक कल्पना के भी अंश के समान। तुम्हें वो सब बताना चाहता हूँ जो ख्वाब मैने अपनी आँखों से जिए है। पर तुम कभी मेरे पास आती ही नही हो-
जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
रंजिश ही सही...
चलो में तुम्हें खुद ही बता देता हूँ। सर्दी के मौसम में तुम संग उस धूप के एक कोने को बाँटना चाहता हूँ। जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर आँखों से खींचकर तेरे आँचल के साए को , औंधें पड़े रहे कभी छत पर पड़े हुए, दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन, बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए।और बारिश का ज़िक्र होते ही बस यही बात मन में आती है-
बारिशें खुल के, जब भी घर हमारे आए
गाने गुलज़ार के, मिल के गुनगुनायें
सोंधी सोंधी सी खुश्बुओं में भीगे दोनो
अद्रक की चाइ की चुस्कियाँ लगाएँ
हों दूर इतने उस ज़मीन से यूँ लगे ऐसे
जुगनुओं से जलते बुझते लोग हो जैसे
आशियाना ऐसा हो..
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..
कभी इन शब्दों से शुरुआत नही करना चाहता था, पर क्या करे मन ये ज़रा बावरा सा है। बेकग्राउंड में हल्के- हल्के कोई ग़ज़ल सी फ़िज़ा में घुल रही है। आज काफ़ी अरसे बाद काग़ज़ पर कुछ ऊढेलना का मन किया। हिन्दी टाइप करना आसान नही है, अभी पूर्ण विराम चिन्ह मतलब की फुल स्टॉप ढूँढ रहा था। मिल ही नही रहा था कब से। ना जाने कहा खो गया, ना जाने में उसे कहाँ रख के भूल आया। ज़िंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है ना? कुछ ना कुछ हम भूल ही जाते है, कभी- कभी तो सब हमारी नज़रों के सामने होता है फिर भी एक शून्य की परत आँखों के सामने चढ़ी रहती है, और सब कुछ प्रत्यक्ष होने के बाद भी ओझल सा लगता है। कभी- कभी एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब आपको पता है की किसी किस्से, किसी कहानी को अब फुल स्टॉप लगाना ज़रूरी है, पर ये मन की गुस्ताख़ी देखिए फुल स्टॉप लगाना ही नही चाहता और ये दिल वाबस्ता यह कह उठता है-
रंजिश ही सही ..
दिल ही दुखाने के लिए आ..
कॅलीग के साथ कॅफेटीरिया में बैठा था, चाई की चुस्कियाँ ले रहा था। मोहतरमा मेरे करीब से गुज़रीऔर मुझे देखते ही यूँ नज़र फेरी जैसे दुनिया भर के सारे ऐब मुझ में ही क़ाबिज़ हो। मैं मुज़रिमो की तरह सिर झुकाए बैठा हुआ था। खुद में ही कूड़ता हुआ। मेरे लिए तो क़ानून भी तुम हो और इंसाफ़ भी ,तुम जो कहो, जो सज़ा दो सब मंज़ूर है अब। मन ये आवाज़ गूँज उठी-
माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
रंजिश ही सही...
तुम पास होती हो तो लगता है खुद को पा लिया है मैने। मुझे तुम से ज़्यादा कोई समझ ही नही पाएगा। लेकिन हम-शहर होने पर भी इतनी कड़ुवाहट ना जाने क्यूँ। हाँ पर ये मेरा मन भी बड़ा आशावादी है, इसे लगता है सब ठीक ही चल रहा है। फिर मैने मन को तस्सली से समझाया, सच का आईना दिखाया तब जाके ये हुज़ूर कुछ समझ पाए। तुमसे एक अंजान सा रिश्ता बनते जा रहा है। मानो की हम कभी तो मिले थे, कहीं तो मिले थे। तुम आती हो तो अपने होने का एहसास होता। जानती हो तुम जब तुम्हे देखता हूँ तो क्या सोचता हूँ -
नैना तेरे कजरारे हैं, नैनों पे हम दिल हारे हैं
अनजाने ही तेरे नैनों ने वादे किए कई सारे हैं
साँसों की लय मद्धम चलें, तोसे कहे
बरसेगा सावन...
ना जाने कब से मन में दबी हुए बातें बाहर खुली हवा में साँस लेना चाहती थी। शब्द अपने अस्तित्व की तलाश में भटक रहे थे दर- दर। पर जब से तुम मिली हो इन्हे इनको इनका वजूद मिला है। ऐसी ही तो हो तुम सब कुछ ठीक कर देने वाली। मैं कोई खुदा तो नहीं पर तुम मेरे लिए किसी इबादत से कम नही है। तुम होती हो तो लगता है सब कुछ मुकम्मल है। बस डर लगता है की मेरे इस ख्वाब को कोई तोड़ ना दे, एक यही तो मेरे पास जो तुम्हारा है। सुनो, मेरे बारे में कोई बात ना करना ज़माने से क्यूंकी -
बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक़ जाएगी..
तुम्हारी नाराज़ आँखें सब बयाँ कर जाती है। बिन बोले ये कितना बोलती है, बक -बक, बक-बक, थकती नही है ये? वैसे तो मेरे सामने आते ही तुम चुप हो जाती हो। पर इस खामोशी में भी तुम्हारी ही आवाज़ सुनाई देती है। हर एक चेहरा इबारत बन गया है, जिसे देखूं उसमें तुम नज़र आती हो। पर तुम्हारी ये चुप छाप निगाहें अब खलने लगी है, और दिल ये कह उठता है-
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
रंजिश ही सही...
तुमसे ही अब मेरी सारी ग़ज़लें है मेरी सारी बातें है। बहुत इस काम में लगने लगा दिल, ग़ज़ल कहना इबादत बन गया है। ज़रा सा छू लिया था मैने तुम्हें, महेकना आपनी आदत बन गया है। पता है मैने, हमारे लिए कई ख्वाब सजाए हैं। कुछ पूरे है, कुछ अधूरे और कुछ केवल एक कल्पना के भी अंश के समान। तुम्हें वो सब बताना चाहता हूँ जो ख्वाब मैने अपनी आँखों से जिए है। पर तुम कभी मेरे पास आती ही नही हो-
जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
रंजिश ही सही...
चलो में तुम्हें खुद ही बता देता हूँ। सर्दी के मौसम में तुम संग उस धूप के एक कोने को बाँटना चाहता हूँ। जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर आँखों से खींचकर तेरे आँचल के साए को , औंधें पड़े रहे कभी छत पर पड़े हुए, दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन, बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए।और बारिश का ज़िक्र होते ही बस यही बात मन में आती है-
बारिशें खुल के, जब भी घर हमारे आए
गाने गुलज़ार के, मिल के गुनगुनायें
सोंधी सोंधी सी खुश्बुओं में भीगे दोनो
अद्रक की चाइ की चुस्कियाँ लगाएँ
हों दूर इतने उस ज़मीन से यूँ लगे ऐसे
जुगनुओं से जलते बुझते लोग हो जैसे
आशियाना ऐसा हो..
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A lost hope
Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...
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अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए ...
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परिंदे छत पे बुलाते हैं बैन करते हैं मेरी बयाज़ दिखाते हैं बैन करते हैं इन्हें पता ही नहीं बंद खिड़कियों की सिसक ये लोग रो नहीं पाते है...