गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..
कभी इन शब्दों से शुरुआत नही करना चाहता था, पर क्या करे मन ये ज़रा बावरा सा है। बेकग्राउंड में हल्के- हल्के कोई ग़ज़ल सी फ़िज़ा में घुल रही है। आज काफ़ी अरसे बाद काग़ज़ पर कुछ ऊढेलना का मन किया। हिन्दी टाइप करना आसान नही है, अभी पूर्ण विराम चिन्ह मतलब की फुल स्टॉप ढूँढ रहा था। मिल ही नही रहा था कब से। ना जाने कहा खो गया, ना जाने में उसे कहाँ रख के भूल आया। ज़िंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है ना? कुछ ना कुछ हम भूल ही जाते है, कभी- कभी तो सब हमारी नज़रों के सामने होता है फिर भी एक शून्य की परत आँखों के सामने चढ़ी रहती है, और सब कुछ प्रत्यक्ष होने के बाद भी ओझल सा लगता है। कभी- कभी एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब आपको पता है की किसी किस्से, किसी कहानी को अब फुल स्टॉप लगाना ज़रूरी है, पर ये मन की गुस्ताख़ी देखिए फुल स्टॉप लगाना ही नही चाहता और ये दिल वाबस्ता यह कह उठता है-
रंजिश ही सही ..
दिल ही दुखाने के लिए आ..
कॅलीग के साथ कॅफेटीरिया में बैठा था, चाई की चुस्कियाँ ले रहा था। मोहतरमा मेरे करीब से गुज़रीऔर मुझे देखते ही यूँ नज़र फेरी जैसे दुनिया भर के सारे ऐब मुझ में ही क़ाबिज़ हो। मैं मुज़रिमो की तरह सिर झुकाए बैठा हुआ था। खुद में ही कूड़ता हुआ। मेरे लिए तो क़ानून भी तुम हो और इंसाफ़ भी ,तुम जो कहो, जो सज़ा दो सब मंज़ूर है अब। मन ये आवाज़ गूँज उठी-
माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
रंजिश ही सही...
तुम पास होती हो तो लगता है खुद को पा लिया है मैने। मुझे तुम से ज़्यादा कोई समझ ही नही पाएगा। लेकिन हम-शहर होने पर भी इतनी कड़ुवाहट ना जाने क्यूँ। हाँ पर ये मेरा मन भी बड़ा आशावादी है, इसे लगता है सब ठीक ही चल रहा है। फिर मैने मन को तस्सली से समझाया, सच का आईना दिखाया तब जाके ये हुज़ूर कुछ समझ पाए। तुमसे एक अंजान सा रिश्ता बनते जा रहा है। मानो की हम कभी तो मिले थे, कहीं तो मिले थे। तुम आती हो तो अपने होने का एहसास होता। जानती हो तुम जब तुम्हे देखता हूँ तो क्या सोचता हूँ -
नैना तेरे कजरारे हैं, नैनों पे हम दिल हारे हैं
अनजाने ही तेरे नैनों ने वादे किए कई सारे हैं
साँसों की लय मद्धम चलें, तोसे कहे
बरसेगा सावन...
ना जाने कब से मन में दबी हुए बातें बाहर खुली हवा में साँस लेना चाहती थी। शब्द अपने अस्तित्व की तलाश में भटक रहे थे दर- दर। पर जब से तुम मिली हो इन्हे इनको इनका वजूद मिला है। ऐसी ही तो हो तुम सब कुछ ठीक कर देने वाली। मैं कोई खुदा तो नहीं पर तुम मेरे लिए किसी इबादत से कम नही है। तुम होती हो तो लगता है सब कुछ मुकम्मल है। बस डर लगता है की मेरे इस ख्वाब को कोई तोड़ ना दे, एक यही तो मेरे पास जो तुम्हारा है। सुनो, मेरे बारे में कोई बात ना करना ज़माने से क्यूंकी -
बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक़ जाएगी..
तुम्हारी नाराज़ आँखें सब बयाँ कर जाती है। बिन बोले ये कितना बोलती है, बक -बक, बक-बक, थकती नही है ये? वैसे तो मेरे सामने आते ही तुम चुप हो जाती हो। पर इस खामोशी में भी तुम्हारी ही आवाज़ सुनाई देती है। हर एक चेहरा इबारत बन गया है, जिसे देखूं उसमें तुम नज़र आती हो। पर तुम्हारी ये चुप छाप निगाहें अब खलने लगी है, और दिल ये कह उठता है-
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
रंजिश ही सही...
तुमसे ही अब मेरी सारी ग़ज़लें है मेरी सारी बातें है। बहुत इस काम में लगने लगा दिल, ग़ज़ल कहना इबादत बन गया है। ज़रा सा छू लिया था मैने तुम्हें, महेकना आपनी आदत बन गया है। पता है मैने, हमारे लिए कई ख्वाब सजाए हैं। कुछ पूरे है, कुछ अधूरे और कुछ केवल एक कल्पना के भी अंश के समान। तुम्हें वो सब बताना चाहता हूँ जो ख्वाब मैने अपनी आँखों से जिए है। पर तुम कभी मेरे पास आती ही नही हो-
जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
रंजिश ही सही...
चलो में तुम्हें खुद ही बता देता हूँ। सर्दी के मौसम में तुम संग उस धूप के एक कोने को बाँटना चाहता हूँ। जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर आँखों से खींचकर तेरे आँचल के साए को , औंधें पड़े रहे कभी छत पर पड़े हुए, दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन, बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए।और बारिश का ज़िक्र होते ही बस यही बात मन में आती है-
बारिशें खुल के, जब भी घर हमारे आए
गाने गुलज़ार के, मिल के गुनगुनायें
सोंधी सोंधी सी खुश्बुओं में भीगे दोनो
अद्रक की चाइ की चुस्कियाँ लगाएँ
हों दूर इतने उस ज़मीन से यूँ लगे ऐसे
जुगनुओं से जलते बुझते लोग हो जैसे
आशियाना ऐसा हो..
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..
कभी इन शब्दों से शुरुआत नही करना चाहता था, पर क्या करे मन ये ज़रा बावरा सा है। बेकग्राउंड में हल्के- हल्के कोई ग़ज़ल सी फ़िज़ा में घुल रही है। आज काफ़ी अरसे बाद काग़ज़ पर कुछ ऊढेलना का मन किया। हिन्दी टाइप करना आसान नही है, अभी पूर्ण विराम चिन्ह मतलब की फुल स्टॉप ढूँढ रहा था। मिल ही नही रहा था कब से। ना जाने कहा खो गया, ना जाने में उसे कहाँ रख के भूल आया। ज़िंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है ना? कुछ ना कुछ हम भूल ही जाते है, कभी- कभी तो सब हमारी नज़रों के सामने होता है फिर भी एक शून्य की परत आँखों के सामने चढ़ी रहती है, और सब कुछ प्रत्यक्ष होने के बाद भी ओझल सा लगता है। कभी- कभी एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब आपको पता है की किसी किस्से, किसी कहानी को अब फुल स्टॉप लगाना ज़रूरी है, पर ये मन की गुस्ताख़ी देखिए फुल स्टॉप लगाना ही नही चाहता और ये दिल वाबस्ता यह कह उठता है-
रंजिश ही सही ..
दिल ही दुखाने के लिए आ..
कॅलीग के साथ कॅफेटीरिया में बैठा था, चाई की चुस्कियाँ ले रहा था। मोहतरमा मेरे करीब से गुज़रीऔर मुझे देखते ही यूँ नज़र फेरी जैसे दुनिया भर के सारे ऐब मुझ में ही क़ाबिज़ हो। मैं मुज़रिमो की तरह सिर झुकाए बैठा हुआ था। खुद में ही कूड़ता हुआ। मेरे लिए तो क़ानून भी तुम हो और इंसाफ़ भी ,तुम जो कहो, जो सज़ा दो सब मंज़ूर है अब। मन ये आवाज़ गूँज उठी-
माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
रंजिश ही सही...
तुम पास होती हो तो लगता है खुद को पा लिया है मैने। मुझे तुम से ज़्यादा कोई समझ ही नही पाएगा। लेकिन हम-शहर होने पर भी इतनी कड़ुवाहट ना जाने क्यूँ। हाँ पर ये मेरा मन भी बड़ा आशावादी है, इसे लगता है सब ठीक ही चल रहा है। फिर मैने मन को तस्सली से समझाया, सच का आईना दिखाया तब जाके ये हुज़ूर कुछ समझ पाए। तुमसे एक अंजान सा रिश्ता बनते जा रहा है। मानो की हम कभी तो मिले थे, कहीं तो मिले थे। तुम आती हो तो अपने होने का एहसास होता। जानती हो तुम जब तुम्हे देखता हूँ तो क्या सोचता हूँ -
नैना तेरे कजरारे हैं, नैनों पे हम दिल हारे हैं
अनजाने ही तेरे नैनों ने वादे किए कई सारे हैं
साँसों की लय मद्धम चलें, तोसे कहे
बरसेगा सावन...
ना जाने कब से मन में दबी हुए बातें बाहर खुली हवा में साँस लेना चाहती थी। शब्द अपने अस्तित्व की तलाश में भटक रहे थे दर- दर। पर जब से तुम मिली हो इन्हे इनको इनका वजूद मिला है। ऐसी ही तो हो तुम सब कुछ ठीक कर देने वाली। मैं कोई खुदा तो नहीं पर तुम मेरे लिए किसी इबादत से कम नही है। तुम होती हो तो लगता है सब कुछ मुकम्मल है। बस डर लगता है की मेरे इस ख्वाब को कोई तोड़ ना दे, एक यही तो मेरे पास जो तुम्हारा है। सुनो, मेरे बारे में कोई बात ना करना ज़माने से क्यूंकी -
बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक़ जाएगी..
तुम्हारी नाराज़ आँखें सब बयाँ कर जाती है। बिन बोले ये कितना बोलती है, बक -बक, बक-बक, थकती नही है ये? वैसे तो मेरे सामने आते ही तुम चुप हो जाती हो। पर इस खामोशी में भी तुम्हारी ही आवाज़ सुनाई देती है। हर एक चेहरा इबारत बन गया है, जिसे देखूं उसमें तुम नज़र आती हो। पर तुम्हारी ये चुप छाप निगाहें अब खलने लगी है, और दिल ये कह उठता है-
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
रंजिश ही सही...
तुमसे ही अब मेरी सारी ग़ज़लें है मेरी सारी बातें है। बहुत इस काम में लगने लगा दिल, ग़ज़ल कहना इबादत बन गया है। ज़रा सा छू लिया था मैने तुम्हें, महेकना आपनी आदत बन गया है। पता है मैने, हमारे लिए कई ख्वाब सजाए हैं। कुछ पूरे है, कुछ अधूरे और कुछ केवल एक कल्पना के भी अंश के समान। तुम्हें वो सब बताना चाहता हूँ जो ख्वाब मैने अपनी आँखों से जिए है। पर तुम कभी मेरे पास आती ही नही हो-
जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
रंजिश ही सही...
चलो में तुम्हें खुद ही बता देता हूँ। सर्दी के मौसम में तुम संग उस धूप के एक कोने को बाँटना चाहता हूँ। जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर आँखों से खींचकर तेरे आँचल के साए को , औंधें पड़े रहे कभी छत पर पड़े हुए, दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन, बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए।और बारिश का ज़िक्र होते ही बस यही बात मन में आती है-
बारिशें खुल के, जब भी घर हमारे आए
गाने गुलज़ार के, मिल के गुनगुनायें
सोंधी सोंधी सी खुश्बुओं में भीगे दोनो
अद्रक की चाइ की चुस्कियाँ लगाएँ
हों दूर इतने उस ज़मीन से यूँ लगे ऐसे
जुगनुओं से जलते बुझते लोग हो जैसे
आशियाना ऐसा हो..
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