तुम्हारे आँचल में होता हूँ
तो दिल करता है कुछ कहने का
तुम्हारी गरमाहट को महसूस करने का
तुम्हारे मुलायम बदन पे अपने तलवे सहलाने का
उन चंद लम्हों के लिए हो जाता हूँ
उस पवित्र नदी के जैसा
जो तुम्हें कभी चूमती है
तो कभी थोड़ा और कस के पकड़ लेती है
और फिर हो जाता हूँ दूर
जैसे हर साल वो हो जाती है तुमसे
देखता हूँ की तुम्हारी और उसकी दूरी बढ़ती ही जा रही हर साल
क्या ऐसे ही हमारा रिश्ता भी दूर का हो जाएगा ।
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