थकान गले तक भरी हुई है । दिमाग़ पाँव तक
सुन्न है । सुबह सुबह रात की बची ख़बरें
झनझना रही हैं । ऐसी तमाम ख़बरों के साथ
दिन बदल जाते हैं । हम उन्हें युद्ध में बदल कर
मोर्चे पर डटे सिपाही का भरम पाल लेते हैं ।
कुछ दर्शक कुछ पाठक भी रण में उतरे होते हैं
। तलवारें भांज रहे होते हैं ।
बाक़ी बची ख़बरों से चुपचाप रक्त रीसता है ।
इस माहौल में कौन रोता है किसका लहू
देखकर, कौन भीगता है किसी के आँसू देखकर
। हम सबको पता है कि हम सब ऐसे ही हैं । हम
सब ऐसे ही रहेंगे । चुप रहना है बस । खुद से
भी चुप्पी साध लेनी है ।
जो पकड़ा जाएगा मारा जाएगा । उसके लिए
बाक़ी लोग लिख कर या बोलकर क्या बदल
लेंगे । फिर भी बोला तो जायेगा ।
लिखा तो जायेगा । कुछ बदल भी जाये
तो इसी नाम पर सब चलता चला जाएगा ।
आप ख़ुद को जितना ख़ाली करते हैं
उतना ही भरने लगते हैं । ख़ाली जगह में
हवा घुसकर साय सायं करती है । शोर है ।
भीतर ,बाहर । आप जो नहीं है वो भी हैं कई
लोगों की नज़र में । जो हैं वो भी नहीं हैं
कइयों की नज़र में । आप कहीं है ही नहीं । ख़ुद
में न दूसरों की नज़र में । राजनीति कीजिये ।
बस कहिये कि राजनीति नहीं करते ।
अपना साक्षी ख़ुद बन जाइये ।
तब भी कुछ नहीं होगा । कुछ नहीं बदलेगा ।
भाषा के उसी भवंर में हम आप उतराते रहेंगे ।
वाक्य विन्यासों के हाइवे पर स्कूटी दौड़ाते
रहेंगे । चेतना जड़ समाज में
लिखना चेतनाशील नहीं है । दावा मत कीजिये
। दूसरे को दे दीजिये । गुट ज़रूरी है । गुटका भी ।
कांग्रेस ज़रूरी है । बीजेपी भी । नेता ज़रूरी हैं ।
कार्यकर्ता भी । विचारधारा ज़रूरी है ।
अवसरवाद भी । पीछे से मार करने
की रणनीति बनाते रहिए । सामने से मुस्कुराते
रहिये । सामने वाले को गिरते देखिये । गिराने
वाले के साथ हो जाइये । दलीलें तैयार रखिये ।
यही हथियार हैं । शातिर और दलाल यूँ
ही नहीं श्रेष्ठ दलील रखते हैं । उनका दर्शन
त्वरित और मारक है । कुछ भी नया नहीं है ।
जो नया नहीं है वो भी आपका है । पहली बार है
। ऐसा दावा करते रहिए । बातें परती ज़मीन हैं ।
हर दौर में उन पर कब्ज़ा होता रहेगा । तनाव से
गुज़रते हुए पागल हो जाइये । मेरी तरह अल्ल-
बल्ल लिखते जाइये जैसा कि मैं
अभी अभी कर चुका हूँ । मैं अभी पागल
नहीं हुआ हूं । ईंट पत्थर की बदबू से भरा यह
शहर जल्दी पागल कर देगा । शातिर शांत है ।
वो लिखता नहीं है । मारे गए लोग लहू
को स्याही समझ लिख देते हैं । पागल होने के
इस दौर में पैराग्राफ़ मत बदलिये । एक
ही साँस और एक ही रौं में कह जाइये । कुछ
नहीं होगा । जो पाया है गँवा दीजिये । सिर्फ
बातें बचती हैं । जिन्हें छोड़ दिया जाता है
आपके पीछे । ताकि आप भागते रहें और सुनते
रहें । दीवारों पर, पोस्टरों पर, टीवी में,
अख़बारों में । हर तरफ़ बातें हैं । सत्य
अंडरवियर पहनकर समंदर के किनारे 'हाफ़
ट्रूथ' बना सूर्य स्नान कर रहा है । झूठ शहर
का मेयर बन गया है । बारिश से कौन भीग
रहा है । वो जो घर से निकला ही नहीं । आनंद
रेडिमेड है । नूडल है । शर्म आँखों में नहीं जुराब
में होती है । जूते तो उतारो । मिल जाओ हर
धारा से । मिले रहो । इससे उससे । सबसे ।
सुनो । चुपचाप । साँसों को आहट की तरह ।
कहो चुपचाप कानों में साज़िश की तरह ।
बिजली चली जाएगी । नींद भी चली जाएगी ।
जागते हुए पागल होना अच्छा नहीं है ।
क्या इस शहर में नींद किराये पर मिलती है ?
क्या बताऊं अपने बारे में ... बस इतना समझ लीजिए की पागल हवा का झोंका हूँ .. .. जो मन करता है वही करता हूँ ... बक-बक करने की आदत है सो ब्लॉग लिख कर मन बहलाता हूँ ..... ज़मीन से जुड़ा हूँ .. सो ज़मीन की बातें करता हूँ .. छोटी-छोटी चीज़ो में खुशी ढूँढने की कोशिश करता हूँ ... बॉस मैं ओल्ड फेशन्ड .. थोड़ा सा कन्सर्वेटिव .. दूरदर्शन जेनरेशन का आदमी हूँ .. मिलने की उम्मीद करता हूँ .. बिछड़ने से डरता हूँ .. सपने देखता हूँ .. इससे ज़्यादा मेरे बारे में क्या जानोगे.... !!!!
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A lost hope
Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...
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अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए ...
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Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...
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परिंदे छत पे बुलाते हैं बैन करते हैं मेरी बयाज़ दिखाते हैं बैन करते हैं इन्हें पता ही नहीं बंद खिड़कियों की सिसक ये लोग रो नहीं पाते है...
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