पानी शहर में डूब चुका था । नदियाँ शहरों में
डूब गई थीं । पहाड़ शहर में खप गए थे । जिन्हें
हमने डूबा हुआ मान लिया था अब यही सब
हमें डूबा रहे हैं । बारिश बावरी हो गई है । जाने
दो ये महीना हम फिर बनायेंगे । करेंगे विकास
उन्हीं रास्तों पर जहाँ नदियाँ बहा करती थीं ।
सीमेंट से भर देंगे । जो विरोध करेगा वो पागल
कहलाएगा । भरो भरो शहरों को रेत के बारूद से
भर दो । नाली पानी के निकलने का रास्ता मत
बनाओ । फ़्लाइओवर बनाओ । पैराग्राफ़ मत
बदलो । बड़बड़ाते जाओ । इमारतें ढह रही हैं ।
जिस शिव की जटा से गंगा निकली उसी शिव
की मूर्ति से गंगा दहाड़ मार मार कर
टकरा रही है । महाविलाप का प्रलय है । कुछ
का मर जाना तय है । गंगा ख़तरे के निशान से
ऊपर है । हम नदियों से दूर जा चुके हैं ।
नदियाँ हमारी गर्दन पकड़ रही हैं । बचाओ
बचाओ । ऐ विकास अलकनंदा सो बचाओ रे ।
ऐ विकास भागीरथी से बचाओ रे । मार
देंगी दोनों । गंगा सबको नंगा कर देगी ।
मानसून का मातम सुन । सब गिरेगा सब
बहेगा । कोई अफ़सोस मत करो । इंजीनियर ने
पढ़ा ही होगा । नेता ने देखा ही होगा । पहाड़ों के
रास्ते पहली बाढ़ नहीं है । हरहर हाहाकार ।
क्या बताऊं अपने बारे में ... बस इतना समझ लीजिए की पागल हवा का झोंका हूँ .. .. जो मन करता है वही करता हूँ ... बक-बक करने की आदत है सो ब्लॉग लिख कर मन बहलाता हूँ ..... ज़मीन से जुड़ा हूँ .. सो ज़मीन की बातें करता हूँ .. छोटी-छोटी चीज़ो में खुशी ढूँढने की कोशिश करता हूँ ... बॉस मैं ओल्ड फेशन्ड .. थोड़ा सा कन्सर्वेटिव .. दूरदर्शन जेनरेशन का आदमी हूँ .. मिलने की उम्मीद करता हूँ .. बिछड़ने से डरता हूँ .. सपने देखता हूँ .. इससे ज़्यादा मेरे बारे में क्या जानोगे.... !!!!
Monday, 17 June 2013
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A lost hope
Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...
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अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए ...
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Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...
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परिंदे छत पे बुलाते हैं बैन करते हैं मेरी बयाज़ दिखाते हैं बैन करते हैं इन्हें पता ही नहीं बंद खिड़कियों की सिसक ये लोग रो नहीं पाते है...
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