Friday, 9 August 2013

थर्ड क्लास है चेन्नई एक्सप्रेस

चेन्नई एक्सप्रेस शाहरूख़ खान के लिए वही है जो एक थके हुए दौर में अमिताभ बच्चन के लिए जादूगर, तूफान ,आज का अर्जुन और मृत्युदाता हुआ करती थी फ़िल्म और नायक के चेहरे पर थकान नज़र आती है चालीस की उम्र में अपनी पसंद की ज़िंदगी की ऐसी खिचड़ी का विकल्प है चेन्नई एक्सप्रेस जिसमें दिल वाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे की नोस्ताल्जिया का छौंक भी ख़ास असर पैदा नहीं करती है इस फ़िल्म के बारे में लिखने लायक कुछ नहीं है निश्चित रूप से यह शाहरूख़ की सबसे ख़राब फ़िल्मों से एक है आप कहेंगे कि मैंने क्यों देखी तो मैं किंग खान का फ़ैन हूँ उनके नाम पर एक कूड़ा फ़िल्म तो देख ही सकता हूँ उत्तर दक्षिण हास्य के नाम पर दक्षिण के लोगों का ऐसा चित्रण है जो समस्या पैदा करती है भाषा के अंतर को पाटने के लिए रंग रूप का केरिकेचर ठीक नहीं लगा साफ़ साफ़ कहूँ तो काले रंग को बदसूरत और राक्षसी बनाने का प्रयास है पहला हाफ़ बाकवास है दूसरे हाफ़ में शाहरूख़ थोड़ा ठीक लगे हैं कुल मिलाकर शाहरूख़ का राहुल अब जादू नहीं पैदा कर पा रहा है ऐसी फ़िल्मों से वे दर्शकों को खो देंगे उत्तर की एक फ़िल्म दक्षिण में गई है इसलिए शुक्रिया तमिल की ध्वनि हिन्दी के साथ संगीत पैदा करती है थोड़ा हास्य तो पैदा करती ही है ट्रेन का बाहरी सिक्वेंस और नज़ारा शानदार है कहानी के नाम पर कुछ नहीं है चंद संयोग और सड़क छाप संवाद दूध का जला बरनाल फूँक फूँक पर लगाता है टाइप भाषा और समाज के इस अंतर पर एक दूजे के लिए ही बेहतरीन है आज भी दीपिका की एक्टिंग ठीक ठाक है यह फ़िल्म शाहरूख़ के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित होगी शाहरूख़ अब अमिताभ की तरह पर्दे पर भूमिका को बदलेंगे रोमांटिक हीरो रोमांस में ही अच्छा लगता है लेकिन कब तक कहानी हो तो पचास की उम्र में भी रोमांटिक रोल कर सकता है संयोग से फ़िल्म में शाहरूख़ चालीस और पचास साल की उम्र को लेकर मज़ाक़ करते दिखते हैं जीवन का संकट फ़िल्म में भी है लोग चेन्नई एक्सप्रेस नहीं देख रहे थे उन्हें जितनी भी खुशी मिली वो शाहरूख़ को कुछ भी करते देख कर मिली किंग खान को शुक्रगुज़ार होना चाहिए हां वो गाना पसंद आया कश्मीर तू मैं कन्याकुमारी ईद के दिन एक बेकार फ़िल्म अइयइयो

नोट-शाहरूख़ बाज़ार का उत्पाद बन गए है शुरू के हिस्से में नोकिया लुमिया बेचना ठीक नहीं लगा बचते तो अच्छा रहता  



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