दिवाली के बाद टेलीविजन पर पटाखे से पैदा कचरे की तस्वीरें आ रही हैं। हर साल आती हैं लेकिन इस साल ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे पटाखों के बाद के असर को पहली बार कवर किया जा रहा है। फिर भी हर लिहाज़ से यह अच्छा है कि कचरों को लेकर सवाल हो रहे हैं। कुछ चैनलों ने यह भी मुद्दा उठाया कि कैसे पटाखेबाज़ी से प्रदूषण दस गुणा बढ़ गया है। ऐसे प्रयासों का कालक्रम में असर होता है तभी तो पटाखा छोड़ने वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही है। इतनी नहीं हुई है कि आप समाप्ति की घोषणा कर दें मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और पब्लिक स्कूलों के प्रयास से कई बच्चे अब पटाखे छोड़ने को अच्छा नहीं मानते।
लेकिन क्या चैनल पटाखों से फैले कचरे को लेकर सही सवाल कर रहे हैं। कचरा क्यों फैला क्योंकि पटाखे छोड़े गए। बीजेपी सांसद और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन ने अपील की थी कि पटाखे से बचें और शांत दिवाली मनाएं। दिवाली के दिन एक अखबार में दो विज्ञापन अगल बगल छपा। एक में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर अपील कर रहे हैं कि प्रयास कीजिए कि पटाखों से दूर रहें। बगल में एम सी डी की तरफ से छपे विज्ञापन में बीजेपी ने पटाखे छोड़ने की अपील कर रहे हैं। कह रहे हैं कि पटाखे के बाद कचरा ज़रूर साफ करें। वो यह नहीं कह रहे कि पटाखे न छोड़ें। इससे हवा और ज़मीन दोनों पर प्रदूषण फैलता है। सिर्फ ज़मीन पर पसरा कचरा क्यों दिखाते हो। हवा में फैला ज़हर भी तो बताओ। वो क्या लोग साफ करेंगे। कैसे साफ करेंगे। झाडू़ लेकर फोटो खिंचायेंगे। क्यों न डाक्टर हर्षवर्धन का साथ दिया जाए और आतिशबाज़ी को एक ही बार में प्रतिबंधित कर दिया जाए।
पटाखे छोड़ने वाले कौन हैं। सब हैं। इनमें मोदी भक्त भी हैं, संघ के भी लोग हैं, कांग्रेस बसपा शिवसेना को वोट देने वाले भी होंगे। कुछ तटस्थ नागरिक भी होंगे। इन सबने पटाखे छोड़े और शहर शहर गली गली को कचरे से भर दिया। तो क्या इन पर अपने नेता की बात का कोई असर नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया कि टीवी चैनलों ने इसे उजागर कर जागरूकता फैलाने का काम किया है। कुछ चैनलों ने यह भी दिखाया कि कुछ जगहों पर लोगों ने सफाई की है जिसका शुक्रिया अदा किया गया। पटाखे से गंदा हुए शहरों और राज्यों में बीजेपी शासित और सांसदों के भी हैं। कांग्रेस सपा एन सी पी क भी हैं। तो क्या इन नेताओं ने अपने मतदाताओं का प्रधानमंत्री के कहे अनुसार नेतृत्व किया। कितने सांसदों ने इस बार सफाई करते हुए तस्वीर ट्वीट की। क्या सफाई अभियान सिर्फ नैतिकता की भेंट चढ़ गया।
चैनल लोगों से पूछ रहे हैं कि आपने साफ क्यों नहीं किया। दरअसल यह सही होते हुए भी गलत सवाल है। सही इसलिए कि जो कचरा फैलाएगा उसी को साफ करना चाहिए। लेकिन गलत इसलिए है कि तस्वीर दिखाकर हंगामा करने से क्या होगा। क्या यह बात अब औपचारिक और संवैधानिक हो गई है कि कचरा नागरिक ही साफ करेंगे। कचरा उठाने का सिस्टम क्या बन रहा है। जब तक यह सिस्टम नहीं बनेगा मीडिया बार बार कहता रहेगा कि मोदी के स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ीं। एक तरह से यह अधूरा प्रयास होगा। मीडिया को चेक करना चाहिए कि शहर की सफाई के लिए कितने कर्मचारी हैं। कितने कर्मचारियों की ज़रूरत हैं और क्या उनकी भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो रही है। जब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिलेगा हम कचरा कचरा करते रहेंगे। प्रधानमंत्री का अभियान तभी सफल होगा जब सिस्टम बनेगा। सिस्टम बनेगा तो समाज भी वैसे ही चलेगा। वर्ना इक्का दुक्का उदाहरणों से आप अमर चित्र कथा टाइप प्रेरणा तो प्राप्त कर लेंगे समाधान नहीं होगा।
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