Saturday, 25 June 2016

ख़ुद से वादा था पुराना जो निभाया मैंने


एक झूठा ही सही ख़्वाब सजाया मैंने
तुझे अलसुबह अपने पास में पाया मैंने

मेरे जानिब मुझे जो भी मिला बेचेहरा
उसके सांचे पे तेरा नक्श बनाया मैंने

तू नहीं थी, मगर उसमें थी महक तेरी
हाय क्या सूंघ लिया है ये खुदाया मैंने

तेरे आने का ये जो शोर है, अफवाह है ये
अपनी तन्हाई को इक दिन ये बताया मैंने

न तुझे जाने से रोका, न बुलाया वापस
न इस बात पे अफ़सोस जताया मैंने

अपनी उम्मीद का घोंटा गला फिर चुपके से
उसको अपने ही अंधेरे में डुबाया मैंने

तू गई, मैं तेरे जाने पे भी नहीं रोया
ख़ुद से वादा था पुराना जो निभाया मैंने

No comments:

Post a Comment

A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...