तुझे अलसुबह अपने पास में पाया मैंने
मेरे जानिब मुझे जो भी मिला बेचेहरा
उसके सांचे पे तेरा नक्श बनाया मैंने
तू नहीं थी, मगर उसमें थी महक तेरी
हाय क्या सूंघ लिया है ये खुदाया मैंने
तेरे आने का ये जो शोर है, अफवाह है ये
अपनी तन्हाई को इक दिन ये बताया मैंने
न तुझे जाने से रोका, न बुलाया वापस
न इस बात पे अफ़सोस जताया मैंने
अपनी उम्मीद का घोंटा गला फिर चुपके से
उसको अपने ही अंधेरे में डुबाया मैंने
ख़ुद से वादा था पुराना जो निभाया मैंने
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