बचपन
कुछ अल्फ़ाज़ मेरे बचपन को बयान तो नहीं कर सकते। फिर भी अगर एक लफ्ज़ में कहु तो, ज़िन्दगी बचपन ही थी। ये बुलंदिया , ये शोहरतें किसी चीज़ की चिंता नहीं थी। क्या पहनना हैं कैसे रहना हैं मेरा ये वाला दिमाग तो मेरी माँ के पास हुआ करता था। और बचपन की लड़ाई चाहे कितनी बड़ी होती हो उसने कभी मेरे दिल को नहीं दुखाया।
बारिश में जानबुझ कर भीगना ,घर आकर मम्मी की डाट के डर से छत पर छुप जाना ,फिर मम्मी को परेशान होता देख वापस नीचे आना।पापा का आते वक़्त मिठाई लेकर आना। कोई चीज़ मांगने के लिए पापा को पागल बनाना। बर्थडे आने पर पुरे स्कूल में चॉकलेट बाँटना। दीदी की चोटी खींच कर उनको परेशान करना। कही गिर जाने पर भी खुद हीरो बनना और उसे मम्मी पापा से छुपा कर बाथरूम में डेटॉल लगाना।और सबसे अच्छा तो कोई फिल्म देखने के बाद चार दिन तक उसकी कॉपी करना।
हाँ यही करता था मैं बचपन में, पर शायद अब इसे न कर पाऊ ,किसी को खुल कर कुछ न कह पाऊ , बस यही ख्वाहिश हैं मेरी, की एक बचपन ....... और ज़ी पाऊ ।
कुछ अल्फ़ाज़ मेरे बचपन को बयान तो नहीं कर सकते। फिर भी अगर एक लफ्ज़ में कहु तो, ज़िन्दगी बचपन ही थी। ये बुलंदिया , ये शोहरतें किसी चीज़ की चिंता नहीं थी। क्या पहनना हैं कैसे रहना हैं मेरा ये वाला दिमाग तो मेरी माँ के पास हुआ करता था। और बचपन की लड़ाई चाहे कितनी बड़ी होती हो उसने कभी मेरे दिल को नहीं दुखाया।
बारिश में जानबुझ कर भीगना ,घर आकर मम्मी की डाट के डर से छत पर छुप जाना ,फिर मम्मी को परेशान होता देख वापस नीचे आना।पापा का आते वक़्त मिठाई लेकर आना। कोई चीज़ मांगने के लिए पापा को पागल बनाना। बर्थडे आने पर पुरे स्कूल में चॉकलेट बाँटना। दीदी की चोटी खींच कर उनको परेशान करना। कही गिर जाने पर भी खुद हीरो बनना और उसे मम्मी पापा से छुपा कर बाथरूम में डेटॉल लगाना।और सबसे अच्छा तो कोई फिल्म देखने के बाद चार दिन तक उसकी कॉपी करना।
हाँ यही करता था मैं बचपन में, पर शायद अब इसे न कर पाऊ ,किसी को खुल कर कुछ न कह पाऊ , बस यही ख्वाहिश हैं मेरी, की एक बचपन ....... और ज़ी पाऊ ।
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