Saturday, 10 November 2018

कुछ

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ....

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A lost hope

Fountains of lament burst through my desires for you.. Stood like the height of a pillar that you were, I could see your moving eyes ...