Wednesday, 7 November 2018

माँ मोम सी मेरी


माँ मोम सी मेरी पिघल जाती है
माँ हर दीवाली इंतेज़ार में जल जाती है

सज़ा-सजाया होगा सालों से मेरा कमरा
रंगाई-पुताई का निखार तो अब तक होगा गहरा
माँ फिर भी उनको संवार आती है
मेरे फोटो को बार-बार निहार जाती है
माँ मोम सी मेरी पिघल जाती है
माँ हर दीवाली इंतेज़ार में जल जाती है

जलते दीए को रखती है कोना-कोना
कुछ बचा लेती है मेरे खातिर बनाने को खिलोना
सुन पटाखों की धमक वो डर जाती है
मेरी फ़िकर में आँगन से निकल आती है
माँ मोम सी मेरी पिघल जाती है
माँ हर दीवाली इंतेज़ार में जल जाती है

मेरे हिस्से का भी पका होगा पकवान
भले खुद ही खाएगी अगले बिहान
उस अमावस से अम्मा निकल तो आती है
बच्चों से मेरा करा हुआ बहाना हंस के सुनाती है
माँ फिर अगली दीवाली के लिए कुछ उम्मीद बँधा जाती है
बस मेरी खातिर खुद से ही लड़ जाती है
माँ मोम सी मेरी पिघल जाती है
माँ हर दीवाली इंतेज़ार में जल जाती है

-बिस्मिल

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