सब उम्मीद-ए-सहर में सोते हैं
रात इतनी बुरी बला है क्या?
दे रहा है दुआएँ जीने की
यार तू मुझसे कुछ ख़फा है क्या?
सब गुनाह याद आ रहे हैं मुझे
आँखरी वक़्त आ रहा है क्या?
चाँद कुछ बदहवास दिखता है
छत पे वो भी खड़ा हुआ है क्या?
मुझसे सच्चाई पूछती है "बिस्मिल"
झूठ में कोई ज़ायक़ा है क्या?
-बिस्मिल
रात इतनी बुरी बला है क्या?
दे रहा है दुआएँ जीने की
यार तू मुझसे कुछ ख़फा है क्या?
सब गुनाह याद आ रहे हैं मुझे
आँखरी वक़्त आ रहा है क्या?
चाँद कुछ बदहवास दिखता है
छत पे वो भी खड़ा हुआ है क्या?
मुझसे सच्चाई पूछती है "बिस्मिल"
झूठ में कोई ज़ायक़ा है क्या?
-बिस्मिल
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