Friday, 18 August 2017

तन्हा

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा 
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा 

अपने साए से चौंक जाते हैं 
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा 

रात भर बातें करते हैं तारे 
रात काटे कोई किधर तन्हा 

डूबने वाले पार जा उतरे 
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा 

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में 
रात होती नहीं बसर तन्हा 

हम ने दरवाज़े तक तो देखा था 
फिर न जाने गए किधर तन्हा

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