सुनो!
दुनिया चाहे तुम्हें कितना भी
भला-बुरा कहती हो,
लेकिन तुम मेरे लिए बेहद ख़ास हो।
मैं हर सुबह उठते ही तुम्हें याद करता हूँ,
तुम्हारे बिना न ऑफ़िस जाता हूँ,
ना कोई काम करता हूँ।
और फिर शाम को घर में कदम रखते ही,
मैं तुम्हें फिर से अपने पास देखना चाहता हूँ।
सच बताऊँ तो,
तुम मेरी ज़रूरत हो।
जैसे रोज़ कैंटीन का खाना देख
याद आती हैं माँ,
जैसे रोज़ ऑफ़िस का काम देख
याद आते हैं पापा।
सुनो चाय!
तुम्हारे साँवलेपन पर फ़िदा हूँ मैं,
तुम्हारे मीठेपन की ज़रूरत है मुझे।
तुम्हारा, मेरे पास होना ही अपनेपन का एहसास
दिलाता है।
यक़ीन मानो, तुम सबसे अलग हो,
और मैं तुम्हारा तलबगार हूँ।
दुनिया चाहे तुम्हें कितना भी
भला-बुरा कहती हो,
लेकिन तुम मेरे लिए बेहद ख़ास हो।
मैं हर सुबह उठते ही तुम्हें याद करता हूँ,
तुम्हारे बिना न ऑफ़िस जाता हूँ,
ना कोई काम करता हूँ।
और फिर शाम को घर में कदम रखते ही,
मैं तुम्हें फिर से अपने पास देखना चाहता हूँ।
सच बताऊँ तो,
तुम मेरी ज़रूरत हो।
जैसे रोज़ कैंटीन का खाना देख
याद आती हैं माँ,
जैसे रोज़ ऑफ़िस का काम देख
याद आते हैं पापा।
सुनो चाय!
तुम्हारे साँवलेपन पर फ़िदा हूँ मैं,
तुम्हारे मीठेपन की ज़रूरत है मुझे।
तुम्हारा, मेरे पास होना ही अपनेपन का एहसास
दिलाता है।
यक़ीन मानो, तुम सबसे अलग हो,
और मैं तुम्हारा तलबगार हूँ।
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