Sunday, 28 October 2018

फ़ासला

रात और दिन का फ़ासला हूँ मैं
ख़ुद से कब से नहीं मिला हूँ मैं
ख़ुद भी शामिल नहीं सफ़र में पर
लोग कहते हैं क़ाफ़िला हूँ मैं
मोहब्बत तिरी अदालत में
एक शिकवा हूँ इक गिला हूँ मैं
मिलते रहिए कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं
फूल हूँ ज़िंदगी के गुलशन का
मौत की डाल पर खिला हूँ मैं

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